यादों के झरोखे से -
जब तुम मुस्कुराती हो ,
मन में इक नई उमंग ,
नयी कांति बनकर आती हो।
उस साल तुम अपनी ,
नानी के यहाँ आई थीं ;
सारे मकान में ,इक-
नई रोशनी सी लाई थीं।
वो घना सा रूप,
वो घनी केश-राशि;
हर बात में घने-घने,
कहने की अभिलाषी।
उसके बाग़ की ,बगीचों की,
फूल-पत्ती ओ नगीनों की;
हर बात थी घनेरी-घनेरी,
जैसे आदत हो हसीनों की।
गरमी की छुट्टी में -
मैं आऊँगी फ़िर;
चलते -चलते तुमने ,
कहा था होके अधीर।
अब न वो गरमी आती है,
न वो गरमी की छुट्टी;
शायद करली है तुमने,
मेरे से पूरी कुट्टी॥
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ब्लाग पर कविता, कहानी, गजल आदि को प्रकाशित न करें। जो साथी इसके सदस्य नहीं हैं वे प्रकाशन हेतु कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं को कृपया न भेजें, इन्हें इस ब्लाग पर प्रकाशित कर पाना सम्भव नहीं हो सकेगा।
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गुरुवार, 3 सितंबर 2009
यादों के झरोखे से -अतुकांत गीत ---डॉ.श्याम गुप्त
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1 टिप्पणियाँ:
आपकी रचनाधर्मिता से बहुत पहले से परिचित हैं। उम्र में आप बड़े हैं इस लिए निवेदन करते भी सहमते हैं पर कुछ सीमाओं के साथ आपसे अनुरोध है कि ब्लाग की प्रकृति के अनुसार ही रचनाओं की प्रस्तुति करने का कष्ट करें।
कविताओं बगैरह के लिए आपका अपना मंच शब्दकार है ही, इस ब्लाग पर आप अपने किसी भी बात, घटना आदि को लेकर हुए अनुभवों को हमसे बाँटें तो ब्लाग की सार्थकता सही मानों में साबित होगी।
आशा है कि आप अन्यथा नहीं लेंगे।
आपका
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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