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रविवार, 22 जून 2014

hindi ki sabd virasat:

सामयिकी:
हिंदी की शब्द सलिला 
संजीव 
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आजकल हिंदी विरोध और हिनदी समर्थन की राजनैतिक नूराकुश्ती जमकर हो  रही है। दोनों पक्षों का वास्तविक उद्देश्य अपना राजनैतिक स्वार्थ  साधना है। दोनों पक्षों को हिंदी या अन्य किसी भाषा से कुछ लेना-देना नहीं है। सत्तर के दशक में प्रश्न को उछालकर राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जा चुकी हैं। अब फिर तैयारी है किंतु तब  आदमी तबाह हुआ और अब भी होगा। भाषाएँ और बोलियाँ एक दूसरे की पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। खुसरो से लेकर हजारीप्रसाद द्विवेदी और कबीर से लेकर तुलसी तक हिंदी ने कितने शब्द संस्कृत. पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, बुंदेली, भोजपुरी, बृज, अवधी, अंगिका, बज्जिका, मालवी निमाड़ी, सधुक्कड़ी, लश्करी, मराठी, गुजराती, बांग्ला और अन्य देशज भाषाओँ-बोलियों से लिये-दिये और कितने अंग्रेजी, तुर्की, अरबी, फ़ारसी, पुर्तगाली आदि से इसका कोई लेख-जोखा संभव नहीं है. 

इसके बाद भी हिंदी पर संकीर्णता, अल्प शब्द सामर्थ्य, अभिव्यक्ति में अक्षम और अनुपयुक्त होने का आरोप लगाया जाना कितना सही है? गांधी जी ने सभी भारतीय भाषाओँ को देवनागरी लिपि में लिखने का सुझाव दिया था ताकि सभी के शब्द आपस में घुलमिल सकें और कालांतर में एक भाषा का विकास हो किन्तु  प्रश्न पर स्वार्थ की रोटी सेंकनेवाले अंग्रेजीपरस्त गांधीवादियों और नौकरशाहों ने यह न होने दिया और ७० के दशक में हिन्दीविरोध दक्षिण की राजनीति में खूब पनपा  

संस्कृत से हिंदी, फ़ारसी होकर अंग्रेजी में जानेवाले अनगिनत शब्दों में से कुछ हैं: मातृ - मातर - मादर - मदर, पितृ - पितर - फिदर - फादर, भ्रातृ - बिरादर - ब्रदर, दीवाल - द वाल, आत्मा - ऐटम, चर्चा - चर्च (जहाँ चर्चा की जाए), मुनिस्थारि = मठ, -मोनस्ट्री = पादरियों आवास, पुरोहित - प्रीहट - प्रीस्ट, श्रमण - सरमन = अनुयायियों के श्रवण हेतु प्रवचन, देव-निति (देवों की दिनचर्या) - देवनइति (देव इस प्रकार हैं) - divnity = ईश्वरीय, देव - deity - devotee, भगवद - पगवद - pagoda फ्रेंच मंदिर, वाटिका - वेटिकन, विपश्य - बिपश्य - बिशप, काष्ठ-द्रुम-दल(लकड़ी से बना प्रार्थनाघर) - cathedral, साम (सामवेद) - p-salm (प्रार्थना), प्रवर - frair, मौसल - मुसल(मान), कान्हा - कान्ह - कान  - खान, मख (अग्निपूजन का स्थान) - मक्का, गाभा (गर्भगृह) - काबा, शिवलिंग - संगे-अस्वद (काली मूर्ति, काला शिवलिंग), मखेश्वर - मक्केश्वर, यदु - jude, ईश्वर आलय - isreal (जहाँ वास्तव  इश्वर है), हरिभ - हिब्रू, आप-स्थल - apostle, अभय - abbey, बास्पित-स्म (हम अभिषिक्त हो चुके) - baptism (बपतिस्मा = ईसाई धर्म में दीक्षित), शिव - तीन नेत्रोंवाला - त्र्यम्बकेश - बकश - बकस - अक्खोस - bachenelion (नशे में मस्त रहनेवाले), शिव-शिव-हरे - सिप-सिप-हरी - हिप-हिप-हुर्राह, शंकर - कंकर - concordium - concor, शिवस्थान - sistine chapel (धर्मचिन्हों का पूजास्थल), अंतर - अंदर - अंडर, अम्बा- अम्मा - माँ मेरी - मरियम आदि           

हिंदी में प्रयुक्त अरबी भाषा के शब्द : दुनिया, ग़रीब, जवाब, अमीर, मशहूर, किताब, तरक्की, अजीब, नतीज़ा, मदद, ईमानदार, इलाज़, क़िस्सा, मालूम, आदमी, इज्जत, ख़त, नशा, बहस आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त फ़ारसी भाषा के शब्द : रास्ता, आराम, ज़िंदगी, दुकान, बीमार, सिपाही, ख़ून, बाम, क़लम, सितार, ज़मीन, कुश्ती, चेहरा, गुलाब, पुल, मुफ़्त, खरगोश, रूमाल, गिरफ़्तार आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त तुर्की भाषा के शब्द : कैंची, कुली, लाश, दारोगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त पुर्तगाली भाषा के शब्द : अलमारी, साबुन, तौलिया, बाल्टी, कमरा, गमला, चाबी, मेज, संतरा आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त अन्य भाषाओ से: उजबक (उज्बेकिस्तानी, रंग-बिरंगे कपड़े पहननेवाले) = अजीब तरह से रहनेवाला, 

हिंदी में प्रयुक्त बांग्ला शब्द: मोशाय - महोदय, माछी - मछली, भालो - भला, 

हिंदी में प्रयुक्त मराठी शब्द: आई - माँ, माछी - मछली,  

अपनी आवश्यकता  हर भाषा-बोली से शब्द ग्रहण करनेवाली  व्यापक  में से उदारतापूर्वक शब्द देनेवाली हिंदी ही भविष्य की विश्व भाषा है इस सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार किया जाएगा, भाषायी विवादों का समापन हो सकेगा।
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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

पहली बार मतदान का एहसास बड़ा मीठा-मीठा


आज पहली  बार वोट देने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ, ऐसा नहीं है कि इसी साल  हम  १८ के हुए हैं, बिलकुल ऐसा नहीं है लेकिन कुछ ऐसा रहा कि अभी तक हमें  वोट देने का मौका नहीं मिला..........19th फरवरी का इंतज़ार था...बस!!........18th से ही ये सोच में थे कि कौन से रंग का ड्रेस पहन कर वोट देने जाएँ... आखिर हमारे  लिए तो एक उत्सव सरीखा तो था ही.
मेरी एक फ्रेंड ने मुझे सुझाया और हमने भी उसकी बात मान ली. सुबह-सुबह जल्दी से उठे और जल्दी से तैयार हो गए....लेकिन पापा ने कहा, अरे अभी नहीं १२-१२:३० बजे चलना.... फिर कैसे टाइम पास करें.......अच्छा चलो पेपर पढ़ लेते हैं...पेपर पढ़ा, एक कप काफी पी तब तक १२ बजा किसी तरह........!!
मै, पापा, माँ तीनो लोग साथ निकले....हम कार से नहीं गए क्योकि हमारे घर के करीब  में ही जाना था सो हम व्हील चेयर से ही थे....
वहां पहुंचे तो, क्योकि ये पहली बार था तो हम थोडा असहज महसूस कर रहे थे...फिर भी खुश बहुत  थे....वहां व्हील चेयर वालों के लिए कोई व्यवस्था न देख कर थोडा दुःख हुआ क्योकि मुझे यकीन था कि हमारे जैसे लोगो के बारे में सोचा गया होगा....लेकिन ऐसा कुछ नहीं था यहाँ  तक कि कोई गार्ड भी मदद के लिए नही था........एक सज्जन  ने ये कहा भी कि बताइए ऐसे लोगों के लिए ट्रैक होना चाहिए, ऐसा नहीं कि बजट नहीं आता लेकिन सब चोरी.......खैर! हमलोग मुस्कुराये और चल दिए आगे.....
वहां ४ सीढियाँ चढ़नी थी तो एक भैया वो भी वोट देने आये थे उन्होंने  पापा की मदद की. हम उस रूम में पहुंचे……….मेरा  कार्ड देखा गया फिर मुझसे दस्तखत करवाए गए, उसके बाद मेरी उंगली  पर स्याही से निशान किया गया, जिसका मुझे बहुत इंतज़ार था.....हा हा हा. इसके बाद एक पर्ची देनी थी. एक कोई महाशय वहां बैठे थे, उनको पर्ची  देने गई तो वो मुझे ही देखते रह गए. मेरे पीछे कई लोग थे जब उनलोगों ने आवाज़ लगाई तो उनका ध्यान मेरे उपर से हटा.
इसके बाद हम उस मशीन के पास पहुँच ही गए जहाँ मुझे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का अवसर प्राप्त हुआ......बड़े ही ध्यानपूर्वक हमने अपना फ़र्ज़ अदा किया और मस्ती से चल दिए..........घर आते वक़्त जो भी जान-पहचान का मिलता उससे हम अपने वोट देने का सबूत दिखाते हुए घर पहुँच गए..........
ये मेरे ज़िन्दगी का पहला एहसास था वोटिंग का.............जिसे हम अपने दिल-ओ-दिमाग  में सहेज कर रखेंगे....!
एक खास बात और आज की जो डेट थी वो मेरी बर्थडे डेट भी है, केवल डेट........हा हा हा..!! ये भी एक सुखद इत्तेफाक है..याद रखने के लिए!!!


रविवार, 1 जनवरी 2012

नववर्ष की मंगलकामनाएं


नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं।

कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन और हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी किसलिए? कहीं इस कारण से तो नहीं कि इस वर्ष हम आतंकवाद की चपेट में नहीं आये? कहीं इस कारण तो नहीं कि हम किसी दुर्घटना के शिकार नहीं हुए? कहीं इस कारण तो नहीं कि हमें पूरे वर्ष सम्पन्नता, सुख मिलता रहा?

इसके बाद भी नववर्ष के आने से यह एहसास हो रहा है कि बुरे दिन वर्ष 2011 के साथ चले गये हैं और नववर्ष अपने साथ बहुत कुछ नया लेकर ही आयेगा। देशवासियों को सुख-समृद्धि-सफलता-सुरक्षा आदि-आदि सब कुछ मिले। संसाधनों की उपलब्धता रहे, आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।

कामना यह भी है कि इस वर्ष में बच्चियां अजन्मी न रहें; कामना यह भी है कि महिलाओं को खौफ के साये में न जीना पड़े; कामना यह भी है कैरियर के दबाव में हमारे नौनिहालों को मौत को गले लगाने को मजबूर न होना पड़े; कामना यह भी कि कृषि प्रधान देश में किसानों को आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाने पड़ें; कामना यह भी कि भ्रष्टाचारियों की कोई नई नस्ल पैदा न होने पाये और पुरानी नस्ल का विकास न होने पाये....कितना-कितना है कामना करने के लिए....नये वर्ष के साथ होने के लिए।

आइये चन्द लम्हों के आयोजन में हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी कर देने के साथ-साथ इस पर भी विचार करें। इस विचार के साथ ही आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें...कामना है कि आप सभी को ये वर्ष 2012 सुख-सम्पदा-सुरक्षा-सम्पन्नता-सुकून से भरा मिले।


चित्र गूगल छवियों से साभार


रविवार, 11 सितंबर 2011

आक्रोश के पीछे से छलकता तिरंगे के प्रति सम्मान

अन्ना की आंधी में जिस समय पूरा देश बहा जा रहा था उस समय इस पोस्ट को लगाना बेहतर नहीं समझा था। इस पोस्ट में अन्ना या उनकी टीम के प्रति किसी प्रकार की विरोधी बातें नहीं हैं वरन् उस आन्दोलन जैसे परिदृश्य में एक छोटी सी बालिका के भावों का सम्मिश्रण है।

सम्पूर्ण देश की तरह उरई में भी अन्ना के स्वर से स्वर मिला कर नगरवासी अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे थे। अनशन समाप्ति वाले दिन भी सभी के चेहरे पर एक प्रकार की खुशी, एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिल रहा था। क्या बच्चे, क्या जवान और क्या बुजुर्ग सभी अपनी ही धुन में मस्त थे। उरई में लगातार बारह दिनों से चल रहे अनशन, धरने के समाप्त होने के समय गांधी चबूतरे पर सभी उत्साहीजन एकत्र होकर आगे की रणनीति पर विचार करने के साथ-साथ एक दूसरे को बधाइयां दे रहे थे, मुंह मीठा करवा रहे थे।

उत्साह में तिरंगा आसमान को छू रहा था। बच्चे भी अपनी लम्बाई से दो-चार गुने लम्बे झंडे लेकर उत्साह में झूम रहे थे। चार बच्चे ऐसे थे जो पहले दिन से ही बराबर धरनास्थल पर रहते थे और पूरे जोश के साथ अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाते थे। उनकी उम्र में सम्भवतः बच्चों को पता ही नहीं होता है कि धरना क्या है, अनशन क्यों किया जाता है, भ्रष्टाचार क्या है, अन्ना और सरकार के बीच का टकराव क्या है पर फिर भी वे चारों बच्चे अपने पूर्ण भोलेपन के साथ हमारे आन्दोलन का हिस्सा बनते।

उनकी मासूमियत का दृश्य इस आन्दोलन के अन्तिम दिन दिखा। खुशी से झूमते लोगों के साथ नाचते-थिरकते बच्चों के साथ उछलती-कूदती बच्ची एकाएक चिल्ला पड़ती है-‘‘हाय दइया.........।’’ हम लोगों ने घबराकर, चौंककर उसकी तरफ देखा। उसकी पूरी बात को सुनकर एकदम से हंसी छूट गई। उस बच्ची ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ झंडा एकदम छोड़कर चिल्लाई-‘‘हाय दइया, जो तो कांग्रेस को झंडा है, जो तिरंगा नईंयां।’’

दरअसल उसके हाथ में जो तिरंगा था उसमें सफेद पट्टी में अशोक चक्र नहीं बना हुआ था और उस मासूम को तो यही पता था कि जिस तिरंगे की सफेद पट्टी में नीला अशोक चक्र बना हो वही तिरंगा ध्वज है। उसको समझाकर उसके हाथों में उस तिरंगे को थमाया और वह बच्ची भी बात को समझकर पुनः उसी जोश में भारत माता की जय, इंकलाब जिन्दाबाद करने में अपने साथियों के साथ लग गई। इधर हम मित्र इस बात पर विचार करने लगे कि यदि बच्चों में राजनैतिक दलों के प्रति इस तरह की भावना है तो अब वाकई देश में राजनैतिक सुधारों की आवश्यकता है; घनघोर आवश्यकता है।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बांधवगढ की सैर और शेर के दर्शन....

दो साल पहले ,मई में अचानक ही राजा (डॉ.सुजीत शुक्ल ) का फोन आया, बांधवगढ़ चलना है. मैंने कहा की मई में तो मेरे "ग्रीष्मकालीन भ्रमण कार्यक्रम" तय हैं. रिज़र्वेशन भी हो चुके हैं. राजा बोला " चलो, जून में चलते हैं. लेकिन इसके आगे नहीं. अपने कार्यक्रम १० जून तक समेट लो, भैया से भी बोलो छुट्टियां तैयार रखें. कोई बहाना नहीं. "

अधिकार सहित दिए गए इस आदेश की अवहेलना संभव थी क्या? अपने डेढ़ महीने के कार्यक्रम को एक महीने में समेटा और १० जून को वापस आ गए, सतना. ११ जून को राजा ,और मेरी बुआ सास (राजा की मम्मी) मुंबई से सतना पहुँच गए. अगले दिन हमें बांधवगढ़ के लिए बड़े सबेरे निकलना था.

बांधवगढ़ पहुँचने के लिए विन्ध्य पर्वत श्रृंखला को पार करना होता है. इतने घने और हरे जंगल पूरी पर्वत श्रृंखला पर हैं, कि मन खुश हो जाता है.
बांधवगढ़ पहुँचने के लिए विन्ध्य पर्वत श्रृंखला को पार करना होता है. इतने घने और हरे जंगल पूरी पर्वत श्रृंखला पर हैं, कि मन खुश हो जाता है. हमारी गाडी पहाडियों पर सर्पिल रास्तों से होती हुई आगे बढ़ रही थी. इतना सुन्दर दृश्य!! वर्णनातीत ! इसी पर्वत श्रृंखला में है मोहनिया घटी, जहाँ पहली बार सफ़ेद शेर मिला, इसीलिए उसका नाम मोहन रखा गया.


सुबह १० बजे हम बांधव गढ़ पहुंचे. राजा ने पहले ही सत्येन्द्र जी के रिसोर्ट में बुकिंग करा ली थी. हम सीधे वहीं पहुंचे.
ये रिसोर्ट इतनी खूबसूरत जगह पर है कि यहाँ से बाहरी दुनिया का अहसास ही नहीं होता. लगता है कि हम बीच जंगल में हैं. अलग-अलग बने खूबसूरत कॉटेज घाना बगीचा, आम्रपाली के अनगिनत पेड़, और उन पर लटके बड़े-बड़े असंख्य आम...अनारों से लादे वृक्ष...बहुत सुन्दर स्थान. मन खुश हो गया. देर तक सत्येन्द्र जी और के दोनों ही हमारे साथ गप्पें करते रहे. लंच के बाद सत्येन्द्र जी ही हमें नेशनल पार्क कि पहली साइटिंग पर ले गए. और जंगल के बारे में अमां जानकारियां दिन. अद्भुत ज्ञान है उन्हें जंगल और जंगली जीवों का. पहले दिन तो हम जंगल कि खूबसूरती ही देखते रह गए...हिरन और चीतल जैसे जानवर भी मिले. शेर के पंजों के निशान भी मिले...... इतने घने जंगल............क्या कहें...

दूसरे दिन सुबह चार बजे हम उठ गए और साढे चार बजे जंगल कि तरफ अपनी सफारी में निकल लिए. किस्मत अच्छी थी............दो राउंड के बाद ही शेर के दर्शन हो गए.
हमने तय किया यहां खडे-खडे मौत का इंतज़ार करने से अच्छा है, अपने काटेज़ की तरफ़ जाना. हमारे कौटेज़ डाइनिंग स्पेस से कम से कम सौ कदम दूर......जंगल का मज़ा देने वाले इस रिसोर्ट पर कोफ़्त हो आई
आराम फरमाता शेर......हम बांधवगढ में थे और अलस्सुबह ही हमें शेर के दर्शन हुए थे। उसकी गुर्राहट कानों में अभी भी गूंज रही थी। शाम की साइटिंग के बाद हमने कुछ शौपिन्ग की और रात दस बजे के आस-पास अपने रिसोर्ट पहुंचे। साढे दस बजे वेटर ने डिनर लगा दिये जाने की सूचना दी। हम सब डाइनिंग स्पेस की तरफ बढे। डाइनिंग स्पेस.... पर्यटकों को जंगल का अहसास दिलाने के लिये पूरा रिसोर्ट ही घने जंगल जैसा था , लेकिन ये स्पेस तो केवल आधी-आधी दीवारों से ही घिरा था. खैर... हम डिनर के लिये पहुंचे.अभी हम खाना प्लेटों में निकाल ही रहे थे, कि कुछ गहरी सी, गुर्राहट सी सुनाई दी. सब ने सुनी, मगर किसी ने कुछ नहीं कहा.एक बार...दो बार...तीन बार.... अब बर्दाश्त से बाहर था.... आवाज़ एकदम पास आ गई थी। मेरी बेटी ने पहल की- बोली ये कैसी आवाज़ है? अब सब बोलने लगे- हां हमने भी सुनी... हमने भी.... खाना सर्व कर रहे वेटर ने बेतकल्लुफ़ी से कहा-अरे ये तो बिल्ली की आवाज़ है. अयं...ऐसी आवाज़ में बिल्ली कब से बोलने लगी!!!
नहीं.....ये बिल्ली नहीं है.....गुर्राहट और तेज़ हो गई.... अब दीवार के उस पार शेर और इस पार हम....जंगल से लगा हुआ रिसोर्ट...हदबंदी के लिये बाड तक नहीं.....हम सब तो थे ही, मेरी भांजी भी साथ में....हे ईश्वर!!! दौड के दोनों बच्चों को किचन में बंद किया. अब सारे वेटर भी डरे हुए....बोले- हां शेर आ तो जाता है यहां...... पिछले दिनों एक लडके को खा गया था.... काटो तो खून नहीं.......टेबल पर जस का तस पडा खाना..... हमने तय किया यहां खडे-खडे मौत का इंतज़ार करने से अच्छा है, अपने काटेज़ की तरफ़ जाना. हमारे कौटेज़ डाइनिंग स्पेस से कम से कम सौ कदम दूर......जंगल का मज़ा देने वाले इस रिसोर्ट पर कोफ़्त हो आई. कल तक जिसकी तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे, आज वही मौत का घर दिखाई दे रहा था. खैर....धीरे-धीरे उतरे.... एक-दूसरे का हाथ पकडे किसी प्रकार कौटेज़ तक पहुंचे. आह.... सुकून की लम्बी सांस...... पूरी रात आंखों में कटी. सबेरे जब हम फिर साइटिंग के लिये पहंचे- लोगों को कहते सुना- रात बोखा( मेल टाइगर का नाम) शहर की तरफ़ आया था!!!!!!!!!!

रविवार, 3 अप्रैल 2011

बजा क्रिकेट में भारत का डंका ।

हार गयी वर्ल्ड कप में लंका ,
बजा क्रिकेट में भारत का डंका
मैच फायनल, था क्या हाल ?
अंतिम क्षण तक मन बेहाल
सबका रहा धड़कता दिल ,
जबतक जीत गयी नहीं मिल
सबने अच्छी क्रिकेट खेली ,
सबकी अपनी-अपनी शैली
पलड़ा कभी, किसी का झुकता,
हर दर्शक का ह्रदय उछलता
जब हुए सहवाग,सचिन आउट ,
लगा जीत में अब है डाउट
गौतम निकले अति गंभीर,
भारत की अच्छी तक़दीर
था विराट का सुखद प्रयास ,
जिससे बधीं जीत की आस
फिर धोनी की सुन्दर पारी ,
जिससे बिखरीं खुशिया सारी
किया बालरों ने भी कमाल ,
फील्डिंग से रहे विरोधी बेहाल
वर्ष अठाईस का इंतजार ,
ख़त्म किया कैप्टन ने छक्का मार
सर्वश्रेष्ठ अपना युवराज ,
हर भारतवासी को नाज
हुईं ख़ुशी से आँखें नम ,
आखिर जीते वर्ल्ड कप हम
रूप कोई भी हो क्रिकेट का ,
भारत अब है नंबर वन