कालेज में पढाई के दिनों एक रविवारीय अवकाश के दिन मै दोपहर में श्री कल्याण राजपूत छात्रावास ,सीकर के अपने कमरे में विश्राम कर रहा था कि मेरे दो दोस्त रामपाल जी गाडोदिया और रविन्द्र जी जाजू प्रिया स्कूटर लेकर आये और कहने लगे कि चलो औधोगिक क्षेत्र की सूनी पड़ी सड़क पर स्कूटर चलाना सीखते है वे दोनों दोस्त समझते थे कि मुझे स्कूटर चलाने का अनुभव है ताकि सिखने में मै उनकी पूरी मदद करूँगा | हालाँकि उस दिन तक मुझे भी स्कूटर चलाना नहीं आता था लेकिन बस यूँ ही फेंक रखी थी कि मै तो ड्राइविंग में एक्सपर्ट हूँ | खैर में भी स्कूटर पर उन दोनों के पीछे बैठ गया स्कूटर रामपाल जी चला रहे थे उन्होंने भी उस दिन पहली बार स्कूटर पर हाथ मारा था | उस दिन रामपाल जी के बड़े भाई ओम जी जिनका स्कूटर था बाहर गए हुए थे इसलिए पीछे से स्कूटर उडाने का अच्छा मौका हाथ लगा था |
उस दिन सबसे मजे की बात तो यह रही कि रामपाल जी पहली बार स्कूटर चलाकर ५ कि.मी. भीड़ भाड़ वाले इलाके से निकल मेरे होस्टल पहुँच गए और फिर भी औधोगिक क्षेत्र की सूनी सड़क पर जाकर चलाना सीखना चाहते थे |
रास्ते में एक मौड़ पर स्कूटर गिरने के बाद आखिर हम तीनो औधोगिक क्षेत्र की सूनी पड़ी सड़क पर पहुँच गए और वहां बारी बारी से एक एक कर स्कूटर चलाने लगे | जब पहली बार स्कूटर में गियर डाल जैसे ही कल्च छोडा स्कूटर झटका खाकर बंद हो गया जिसे मैंने यह कह कर टाल दिया कि ये स्कूटर पहली बार हाथ में आया है ना इसलिए बंद हो गया | लेकिन दूसरी बार बिना किसी दिक्कत के हम स्कूटर चलाने में कामयाब रहे और तो और उसी समय पांच सात किलोमीटर चलाने के बाद साइकिल की तर्ज पर स्कूटर भी थोडा हाथ छोड़कर चलाने की कोशिश की | उसमे भी कामयाबी मिल ही गयी और हम अपने दोनों दोस्तों को यह यकीन दिलाने में कामयाब रहे कि हमें तो स्कूटर चलाना पहले से ही आता था लेकिन उस एक आध घंटे में बिना घुटने तुडवाये जो स्कूटर चलाने पर अपने मन में अपने आप पर जो गर्व का अहसास हो रहा था उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता |
चित्र कालेज में पढ़ते समय का है जिसमे क्रमश: बाए से रविन्द्र जी जाजू ,मै व रामपाल जी है