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सोमवार, 23 नवंबर 2009

पहले रैगिंग का डर और अब याद आती है वो आत्मीयता भरी रैगिंग

बात उन दिनों की है जब हमने साइंस कालेज, ग्वालियर में बी0एस-सी0 में अध्ययन के लिए प्रवेश लिया था। कालेज के हास्टल में हमारे रहने की व्यवस्था की गई थी। हास्टल के नाम से उस समय पूरे शरीर में सिरहन सी दौड़ जाती थी। डर लगा रहता था रैगिंग का।
घर में किसी से यह कहने का साहस नहीं हो पा रहा था कि हम हास्टल में नहीं रहेंगे। मरता क्या न करता की स्थिति में हमने 13 अगस्त को हास्टल में प्रवेश किया। पहले दिन हमें हास्टल छोड़ने हमारे पिताजी और चाचाजी आये।
पिताजी और चाचाजी ने हमारे आने से पहले ही हास्टल के सीनियर्स से मुलाकात कर ली थी क्योंकि शायद घर के लोग भी रैगिंग के नाम से परेशान तो रहे थे? सीनियर्स ने उनको आश्वस्त किया कि यहाँ रैगिंग के नाम पर ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होता है।
हास्टल में दो-तीन दिन बड़ी ही अच्छी तरह से कटे। लगभग हर शाम को हास्टल के सभी लोग छत पर या बाहर लान में एकत्र होते और हँसी-मजाक चलता रहता। इसी बीच थोड़ी बहुत रैगिंग भी होती रहती पर मारपीट से कोसों दूर। हाँ, उन दो-चार लोगों को अवश्य ही दो-चार हाथ पड़े जिन्होंने सीनियर्स के साथ बदतमीजी की।
एक रात लगभग दस या साढ़े दस बजे होंगे, हास्टल के गेट पर दो-तीन मोटरसाइकिल और स्कूटर रुकने की आवाजें सुनाईं दीं। थोड़ी देर की शांति के बाद हमारे हास्टल का चैकीदार, जिसे हम लोग उनकी उम्र के कारण बाबा कहते थे, ने आकर डाइनिंग हाल में पहुँचने को कहा।
अब तो डर के मारे हालत खराब क्योंकि ऐसा सुन रखा था कि किसी दिन पुराने सीनियर छात्र रात को आते हैं और उसी समय जबरदस्त रैंगिंग होती थी यहाँ तक कि मारपीट भी। डरते-डरते डाइनिंग हाल पहुँचे, वहाँ सीनियर्स पहले से ही मौजूद थे।
हम सभी छात्रों को जो हास्टल में पहली बार प्रवेश पाये थे, उन्हें दीवार से टिक कर खड़े होने को कहा गया। पहली बार प्रवेश पाये छात्रों में बी0एस-सी0 प्रथम वर्ष के अलावा दूसरे वर्ष के तीसरे वर्ष के छात्र तो थे ही साथ में एम0एस-सी0 के छात्र भी थे। हाल के बीचों-बीच पड़ी मेज के एक ओर सीनियर्स बैठे हुए थे, उन्हीं के साथ पुराने सीनियर भी बैठे थे। वे पाँच लोग थे।
सबसे पहले हमारा परिचय उन लोगों से करवाया गया, कोई राजनीति कर रहा था तो कोई ठेकेदारी। कोई कहीं नौकरी में था तो कोई अपना कारोबार कर रहा था। सबका परिचय जानने के बाद हम लोगों का परिचय शुरू हुआ। सभी का परिचय हो जाने के बाद शुरू हुआ रैगिंग का सिलसिला।
रैगिंग के नाम पर सभी को कुछ न कुछ करके दिखाना था। किसी को नाचना पड़ा तो किसी को गाना था। किसी को लड़की बनके किसी लड़के के सामने प्यार का इजहार करना था तो किसी को पंखे का अपना दुश्मन मानकर गालियाँ सुनानी थीं। किसी दूसरे को ऐसा करते देख मजा आता किन्तु हँस भी नहीं सकते थे क्योंकि हँसे तो बनाया गया मुरगा।
जिसका भय था वह नहीं हुआ यानि कि मारपीट लेकिन खड़े-खड़े पैर और कमर की हालत खस्ता हुई जा रही थी। किसी लड़के के कुछ न कर पाने पर, किसी के द्वारा कुछ न बता पाने पर पता चला कि सभी को हाथ उठाकर खड़ा करने की सजा मिली। अब खड़े हैं आधा घंटे तक हाथ ऊपर किये।
इस बीच सभी सीनियर्स उठकर चाय पीने चले गये और कह भी गये कि हम चाय पीने जा रहे हैं तब तक हाथ ऊपर उठाये रहना। कोई मुरगा बना था, कोई एक पैर पर खड़ा था, किसी को हाथ उठाने की सजा तो कोई किसी और रूप में सजा काट रहा था। समय गुजरता जा रहा था और सीनियर्स थे कि आने का नाम ही नहीं ले रहे थे। लगभग डेढ घंटे के बाद उन लोगों का आना हुआ।
आने के बाद सभी की सजा समाप्त हुई। सीनियर्स ने हम सभी को कुछ टिप्स दिये कि कैसे मिलजुल कर रहना है। बताया कि प्रत्येक को अपने से बड़े का सम्मान करना है। सभी की मदद करनी है, यह भी बताया कि घर से दूर होने के कारण हम सभी को घर की तरह से रहना है।
इसके बाद सीनियर्स जाने का कार्यक्रम बनाने लगे। घड़ी में समय देखा तो सुबह के पाँच बजने को थे। इसके बाद सीनियर्स अपने साथ हम लोगों को रेलवे स्टेशन तक ले गये और वहाँ खुले हुए रेस्टोरेंट में बढ़िया चाय-नाश्ता करवाया। रात भर की थकान, रैगिंग का डर तब तक निकल चुका था।
इसके बाद भी हास्टल में रैगिंग हुई, मगर चुहल भरी। हाँ, मारपीट की घटना भी किसी एकाध के साथ ही हुई, वो भी एक-दो झापड़ों तक की, वो भी किसी आत्मीयता से भरी। आज लगभग 16 साल बाद भी हास्टल की वो आत्मीयता भरी रैगिंग बहुत याद आती है।

3 टिप्पणियाँ:

Anil Pusadkar ने कहा…

डाक्साब फ़िर याद दिला दी आपने उन सुनहरे दिनो की।हास्टल मे रहने का मौका तो नही मिला मुझे मगर छात्र नेता होने के नाते हास्ट्ल मे अनाधिकृत कब्ज़ा था मेरा और उन दिनो कभी कम्बाईंड स्टडी के नाम पर तो कभी मौज़ मस्ती के नाम पर रातो को वंहा रूक जाते थे।मस्त लिखा डाक्साब,हम लोग तो रैगिंग विरोधी थे।

शबनम खान ने कहा…

hmm...mujhe b yaad aa gyi apni ranging...aji raging kaha..humse zada to hamare seniors dare hue the...par vo pal bhi yaadgar hote ha...khub bayan kiya aapne apni yado ko..shubhkamnaye........

Arshia Ali ने कहा…

काश, रैगिंग का यही असली स्वरूप होता।

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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?