दो साल पहले ,मई में अचानक ही राजा (डॉ.सुजीत शुक्ल ) का फोन आया, बांधवगढ़ चलना है. मैंने कहा की मई में तो मेरे "ग्रीष्मकालीन भ्रमण कार्यक्रम" तय हैं. रिज़र्वेशन भी हो चुके हैं. राजा बोला " चलो, जून में चलते हैं. लेकिन इसके आगे नहीं. अपने कार्यक्रम १० जून तक समेट लो, भैया से भी बोलो छुट्टियां तैयार रखें. कोई बहाना नहीं. "
अधिकार सहित दिए गए इस आदेश की अवहेलना संभव थी क्या? अपने डेढ़ महीने के कार्यक्रम को एक महीने में समेटा और १० जून को वापस आ गए, सतना. ११ जून को राजा ,और मेरी बुआ सास (राजा की मम्मी) मुंबई से सतना पहुँच गए. अगले दिन हमें बांधवगढ़ के लिए बड़े सबेरे निकलना था.
सुबह १० बजे हम बांधव गढ़ पहुंचे. राजा ने पहले ही सत्येन्द्र जी के रिसोर्ट में बुकिंग करा ली थी. हम सीधे वहीं पहुंचे.
ये रिसोर्ट इतनी खूबसूरत जगह पर है कि यहाँ से बाहरी दुनिया का अहसास ही नहीं होता. लगता है कि हम बीच जंगल में हैं. अलग-अलग बने खूबसूरत कॉटेज घाना बगीचा, आम्रपाली के अनगिनत पेड़, और उन पर लटके बड़े-बड़े असंख्य आम...अनारों से लादे वृक्ष...बहुत सुन्दर स्थान. मन खुश हो गया. देर तक सत्येन्द्र जी और के दोनों ही हमारे साथ गप्पें करते रहे. लंच के बाद सत्येन्द्र जी ही हमें नेशनल पार्क कि पहली साइटिंग पर ले गए. और जंगल के बारे में अमां जानकारियां दिन. अद्भुत ज्ञान है उन्हें जंगल और जंगली जीवों का. पहले दिन तो हम जंगल कि खूबसूरती ही देखते रह गए...हिरन और चीतल जैसे जानवर भी मिले. शेर के पंजों के निशान भी मिले...... इतने घने जंगल............क्या कहें...
दूसरे दिन सुबह चार बजे हम उठ गए और साढे चार बजे जंगल कि तरफ अपनी सफारी में निकल लिए. किस्मत अच्छी थी............दो राउंड के बाद ही शेर के दर्शन हो गए.
नहीं.....ये बिल्ली नहीं है.....गुर्राहट और तेज़ हो गई.... अब दीवार के उस पार शेर और इस पार हम....जंगल से लगा हुआ रिसोर्ट...हदबंदी के लिये बाड तक नहीं.....हम सब तो थे ही, मेरी भांजी भी साथ में....हे ईश्वर!!! दौड के दोनों बच्चों को किचन में बंद किया. अब सारे वेटर भी डरे हुए....बोले- हां शेर आ तो जाता है यहां...... पिछले दिनों एक लडके को खा गया था.... काटो तो खून नहीं.......टेबल पर जस का तस पडा खाना..... हमने तय किया यहां खडे-खडे मौत का इंतज़ार करने से अच्छा है, अपने काटेज़ की तरफ़ जाना. हमारे कौटेज़ डाइनिंग स्पेस से कम से कम सौ कदम दूर......जंगल का मज़ा देने वाले इस रिसोर्ट पर कोफ़्त हो आई. कल तक जिसकी तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे, आज वही मौत का घर दिखाई दे रहा था. खैर....धीरे-धीरे उतरे.... एक-दूसरे का हाथ पकडे किसी प्रकार कौटेज़ तक पहुंचे. आह.... सुकून की लम्बी सांस...... पूरी रात आंखों में कटी. सबेरे जब हम फिर साइटिंग के लिये पहंचे- लोगों को कहते सुना- रात बोखा( मेल टाइगर का नाम) शहर की तरफ़ आया था!!!!!!!!!!
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गुरुवार, 14 अप्रैल 2011
बांधवगढ की सैर और शेर के दर्शन....
प्रस्तुतकर्ता वन्दना अवस्थी दुबे पर 5:28 pm 7 टिप्पणियाँ
लेबल:
नेशनल पार्क,
शेर
रविवार, 3 अप्रैल 2011
बजा क्रिकेट में भारत का डंका ।
हार गयी वर्ल्ड कप में लंका ,
बजा क्रिकेट में भारत का डंका ।
मैच फायनल, था क्या हाल ?
अंतिम क्षण तक मन बेहाल ।
सबका रहा धड़कता दिल ,
जबतक जीत गयी नहीं मिल।
सबने अच्छी क्रिकेट खेली ,
सबकी अपनी-अपनी शैली ।
पलड़ा कभी, किसी का झुकता,
हर दर्शक का ह्रदय उछलता ।
जब हुए सहवाग,सचिन आउट ,
लगा जीत में अब है डाउट ।
गौतम निकले अति गंभीर,
भारत की अच्छी तक़दीर ।
था विराट का सुखद प्रयास ,
जिससे बधीं जीत की आस ।
फिर धोनी की सुन्दर पारी ,
जिससे बिखरीं खुशिया सारी ।
किया बालरों ने भी कमाल ,
फील्डिंग से रहे विरोधी बेहाल ।
वर्ष अठाईस का इंतजार ,
ख़त्म किया कैप्टन ने छक्का मार।
सर्वश्रेष्ठ अपना युवराज ,
हर भारतवासी को नाज ।
हुईं ख़ुशी से आँखें नम ,
आखिर जीते वर्ल्ड कप हम ।
रूप कोई भी हो क्रिकेट का ,
भारत अब है नंबर वन ।
प्रस्तुतकर्ता Dr.Aditya Kumar पर 1:43 pm 1 टिप्पणियाँ