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बुधवार, 16 सितंबर 2009

लगे कि हर आदमी टिकट चेकर है

यह घटना एस समय की है जब लातूर में भूकम्प आया हुआ था। हम अपने छोटे भाई हर्षेन्द्र के साथ एक टेस्ट देने के लिए आगरा गये थे। रेलवे की परीक्षा थी, टेस्ट दिया और बापस चल दिये। हम लोगों को कानपुर आना था। टेस्ट देने के बाद हम लोग चले तो रेलवे स्टेशन पर पता लगा कि उस समय कानपुर के लिए कोई ट्रेन नहीं है। जानकारी करने पर मालूम हुआ कि आगरा से टुंडला पहुँच कर वहाँ से आसानी से कानपुर के लिए ट्रेन मिल जायेगी।
आगरा से टुंडला बस से आने के बाद रेलवे स्टेशन पहुँचे। आपकी एक शंका को दूर करने के लिए बताते चलें कि एक तो टेस्ट होने के कारण बसों में भीड़ बहुत थी दूसरे हमें बस की यात्रा तकलीफ ज्यादा देती है। इस कारण से हम ट्रेन से यात्रा करने की सोच रहे थे।
टुंडला स्टेशन पर जैसे ही पहुँचे पता लगा कि एक ट्रेन आ रही है। हालांकि ट्रेन थी पैसेंजर और कानपुर पहुँचना बहुत ही आवश्यक था। इस ट्रेन के बाद दो-तीन घंटे कोई ट्रेन भी नहीं थी। जल्दी से टिकट खिड़की पर पहुँचे तो वह समय सम्बन्धित बाबू की ड्यूटी बदलने का था तो वह अपने हिसाब किताब में व्यस्त था। ट्रेन सामने आती दिख रही थी। उससे बड़ी अनुनय-विनय की पर वह नहीं माना। अब लगा कि यह ट्रेन तो निकली। हमारे भाई ने प्लेटफार्म से आकर सूचना दी कि गाड़ी आकर खड़ी हो गई है। अब तो और भी हालत खराब।
पहले सोचा कि बिना टिकट ही चढ़ जायें पर कभी बिना टिकट यात्रा न करने के कारण से हिम्मत नहीं हो रही थी। सोचा-विचारी में समय न गँवा कर हमने तुरन्त सामने दरवाजे पर खड़े एक टिकट चेकर से अपनी समस्या बताई। उस ने बिना कोई तवज्जो दिये पूरी लापरवाही से कहा कि बैठ जाओ, पैसेंजर में कोई नहीं पकड़ता।
समझ नहीं आया कि क्या करें? सुन तो बहुत रखा था कि इटावा रूट पर चेकिंग नहीं होती पर वही हिम्मत की बात।
अन्त में अपने भाई की तरफ देखा और उस टिकट चेक करने वाले से एक बार और पूछा कि भाईसाहब कोई दिक्कत तो नहीं होगी?
शायद उसको लगा होगा कि कोई अनाड़ी हैं जो पहली बार बिना टिकट यात्रा करने की हिम्मत जुटा रहे हैं। इस बार उसने थोड़ा सा ध्यान हम लोगों की ओर दिया और कहा कि वैसे बिना टिकट जाने में कोई समस्या नहीं फिर भी यदि टिकट लेना है तो दो स्टेशन के बाद यह गाड़ी थोड़ी देर तक रुकती है, वहाँ से ले लेना।
बस हम दोनों भाई तुरन्त लपके क्योंकि गाड़ी भी रेंगने लगी थी। बैठ तो गये, सीट भी मिल गई पर....।
आने जाने वाला हर आदमी लगे कि टिकट चेक करने वाला आ गया। कभी इस तरफ देखें, कभी उस तरफ देखें। लगभग 55 मिनट की यात्रा के बाद वह स्टेशन आया जहाँ से टिकट लिया जा सकता था, हालांकि उसके पहले भी दोनों स्टेशन पर टिकट लेने का प्रयास किया गया पर असफल रहा।
अब सुकून आया और कानपुर तक आराम से आये। आज भी छोटी सी मगर बिना टिकट यात्रा याद है। हम दोनों भाई अब भी कभी-कभी उस समय की अपनी हालत की चर्चा करके हँस लेते हैं।

1 टिप्पणियाँ:

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

बिहारी सोचेगा कि कितने डरपोक होते है लोग ...भारतीय रेल तो अपनी संपत्ति बताई ही जाती है.